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Showing posts from March, 2021

टोबा क्या है इसकी संपूर्ण जानकारी/Toba Rajasthan

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टोबा एक महत्वपूर्ण पारम्परिक जल प्रबन्धन है , यह नाडी के समान आकृतिवाला होता है । यह नाडी से अधिक गहरा होता है । सघन संरचना वाली भूमि , जिसमें पानी का रिसाव कम होता है , टोबा निर्माण के लिए यह उपयुक्त स्थान माना जाता है । इसका ढलान नीचे की ओर होना चाहिए । टोबा के आस - पास नमी होने के कारण प्राकृतिक घास उग आती है जिसे जानवर चरते हैं । प्रत्येक गाँव में जनसंख्या के हिसाब से टोबा बनाये जाते हैं प्रत्येक जाति के लोग अपने अपने टोबा पर झोपड़ियां बना लेते हैं । टोबा में वर्ष भर पानी उपलब्ध रहता है । टोबा में पानी कभी - कभी कम हो जाता है . तो आपसी सहमति से जल का समुचित प्रयोग करते है । एक टोबा के जल का उपयोग सामान्यतः बीस परिवार तक कर सकते हैं । समय समय पर टोबा की खुदाई करके पायतान ( आगोर ) को बढ़ाया जा सकता है । इसे गहरा किया जाता है , ताकि पानी का वाष्पीकरण कम हो ।

टांका क्या है सम्पूर्ण जानकारी/Rajasthan Taanka

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टांका राजस्थान में रेतीले क्षेत्र में वर्षा जल को संग्रहित करने की महत्वपूर्ण परम्परागत प्रणाली है । इसे कुंड भी कहते हैं । यह विशेषतौर से पेयजल के लिए प्रयोग होता है । यह सूक्ष्म भूमिगत सरोवर होता है । जिसको ऊपर से ढक दिया जाता है इसका निर्माण मिट्टी से भी होता है और सिमेण्ट से भी होता है । यहाँ का भू - जल लवणीय होता हैं इसलिए वर्षा जल टांके में इकट्टा कर पीने के काम में लिया जाता है । वह पानी निर्मल होता है । यह तश्तरी प्रकार का निर्मित होता है । टांका किलों में , तलहटी में , घर की छत पर , आंगन में और खेत आदि में बनाया जाता है । इसका निर्माण सार्वजनिकरूपसे लोगों द्वारा , सरकार द्वारा तथा निजी निर्माण स्वंय व्यक्ति द्वारा करवाया जाता है । पंचायत की जमीन पर निर्मित टांका सार्वजनिक होता है । जिसका प्रयोग पूरा गांव करता है । कुछ टांके ( कुंडी ) गांव के अमीरों द्वारा धर्म के नाम पर परोपकार हेतु बनवा दिये जाते हैं । एक परिवार विशेष उसकी देख - रेख करता है । कुंडी या टांके का निर्माण जमीन या चबूतरे के ढलान के हिसाब से बनाये जाते हैं जिस आंगन में वर्षा का जल संग्रहित किया जाता है , उसे , आगोर...

नाडी क्या है /Nadi Rajasthan

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यह एक प्रकार का पोखर होता है । इसमें वर्षा का जल एकत्रित होता है । यह विशेषकर जोधपुर की तरफ होती है । 1520 ई में राव जोधाजी ने सर्वप्रथम एक नाडी का निर्माण करवाया था । पश्चिमी राजस्थान के प्रत्येक गांव में नाडी मिलती है । रेतीले मैदानी क्षेत्रों में ये नाडियाँ 3 से 12 मीटर तक गहरी होती है । इनमें जल निकासी की व्यवस्था भी होती है । यह पानी 10 महिने तक चलता है । एल्युवियल मृदा ( मिट्टी ) वाले क्षेत्रों की नाडी आकार में बड़ी होती है । इनमें पानी 12 महिने तक एकत्र रह सकता है । एक सर्वेक्षण के अनुसार नागौर , बाडमेर व जैसलमेर में पानी की कुछ आवश्यकता का 38 प्रतिशत पानी नाडी द्वारा पूरा किया जाता है । नाडी वस्तुतः भूसतह पर बना एक गड़ा होता है जिसमें वर्षा जल आकर एकत्रित होता रहता है । समय समय पर इसकी खुदाई भी की जाती है , क्योंकि पानी के साथ गाद भी आ जाती है जिससे उसमें पानी की क्षमता कम हो जाती है । कई बार छोटी - छोटी नाड़ियों की क्षमता बढाने🗾🗾 के लिए हो तरफ से उनको पक्की कर दिया जाता है । नाडी बनाने वाले के नाम पर ही इनका नाना त्व दिया जाता है । अधिकांश नाडिया आधुनिक युग में अपना अस्तिव ख...